आइना

औकात

औकात शब्द का जब जिक्र होते ही हमारा ध्यान स्वतः इंसान की आर्थिक यानी उसकी माली हालात पर केंद्रित हो जाता है ।

दरअसल औकात शब्द में निहित अर्थ है मानवता, समाज के लिए उपयोगी सामाजिक थाती अथवा पूंजी में इजाफे और संरक्षण preservation में हमारी जो भागीदारी है अथवा हमारे भीतर इसकी गुप्त सामर्थ्यता capability या संभावना मौजूद है।

यही आपकी असली कीमत या औकात है और इसे नापने का आधार भी यही होनी चाहिए।

पहले से उपलब्ध सामाज के महत्वूर्ण संसाधनों के उपभोग consumption और क्षति के अतिरिक्त जो हम इनके निर्माण में अपना योगदान दे रहे है असल में यही हमारी कीमत है।

आदम समाज की सामूहिक सांझी पूंजी में आर्थिक, भौतिक उपलब्धि के अलावा विशेष तौर पर विज्ञान, साहित्य और कला के क्षेत्र में सेवाओं का सृजन और नवप्रवर्तन inovation भी सामाजिक पूंजी का एक अहम हिस्सा और धरोहर heritage है।

आपमें यदि बौद्धिक intellectual रचनात्मक सृजन creativity की विलक्षण outstanding क्षमता मौजूद है, तो निश्चित रूप से आपकी हैसियत इसे आकने के दूसरे तमाम आर्थिक पैमानों की मोहताज नही है।

क्योंकि इंसानी समाज को दिशा, संतुलन और आकार देने वाले ये जरूरी इनग्रेडिएंट्स हैं।

जिसके समक्ष हैसियत तय करने के अन्य दूसरे सतही पैमाने पूरी तरह से निराधार और औचित्यहिन illogical मालूम होते है।

आर्थिक उपलब्धि इंसान के लिए उपयोगी उत्पाद product को बाजार में बेच धन में तब्दील कर लेने का सिर्फ एक हुनर मात्र है।

दरअसल धन उपयोगिता utility के मान value को संचित store और हस्तांतरित transfer करने का सिर्फ एक साधन है।

क्योंकि अतीत में ऐसे कई महत्वूर्ण शख्स हुए हैं।

जैसे कार्ल मार्क्स, नेलसन मंडेला, महात्मा गांधी जिनके विचारों ने सामाजिक अन्याय और शोषण के विरुद्ध हमें प्रेरित और संगठित कर उस अमुक समस्या से निपटने का हमे मार्ग दिखाया।

और इनके सार्थक विचारों और सिद्धांतों के समक्ष तमाम आर्थिक और राजनीतिक सत्ताए बेबस हो गई।

हालांकि उनके विचार आज भी प्रासंगिक relevant और उपयोगी हैं।

आपकी उपलब्धि इंसानियत के लिए उपयोगी कोई भी सेवा हो सकती है।

यह साहित्य, कला, समाज शास्त्रीय विचारों और दार्शनिक, वैज्ञानिक सिद्धांतों का सृजन हो सकता है।

इनका असल मूल्य इंसान के जीवन में इनकी भूमिका, महत्ता importance प्रभाव influence तय करता है।

जबकि क्षणिक आवश्यकताओं के पोषण और शोषण से संचालित होने वाला बाजार सिर्फ इसकी फेस वैल्यू के आधार पर इसका वास्तविक मूल्यांकन कतई नहीं कर सकता।

क्योंकि इस बाजार के लिए बिना तराशा हुआ हीरा भी एक साधारण कांच के समान है।

अपनी योग्यता के बल पर निसंदेह धन कमाना मुमकिन है लेकिन मात्र धन से इन उपयोगी योग्यताओं को प्रतिस्थापित substitution नहीं किया जा सकता।

क्योंकि तमाम क्रिकेटर्स और फिल्मी हस्तियां अपनी योग्यता की उपयोगिता से हासिल प्रसिद्धि के बूते कई बाजारू प्रोडक्टों का एंडोर्समेंट कर धन जमा कर लेते हैं।

जाहिर है कि यदि आपके अंदर सृजनात्मकता creativity यानी कि प्रोडक्टिविटी का हुनर मौजूद है, इससे बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता कि आपने इसे बाजार में भुनाया है या नहीं है।

क्योंकि इसके बावजूद आपमें दूसरे आर्थिक, राजनीतिक सत्ता के समान ही अंतर्निहित मूल्य inbuilt value मौजूद हैं।

जो लोग प्रत्येक इंसान का मूल्यांकन सिर्फ और सिर्फ उनकी फेस वैल्यू से करते हैं। दरअसल वे निहायती बाजारू, सतही और जाहिल किस्म के लोग होते हैं।

जिस प्रकार इंसानी शरीर को चलाने के लिए कई अंग आवश्यक होते है, जबकि कमोबेश सभी महत्वूर्ण है लेकिन, कुछ अंग हमारे निर्वाह के लिए जरूरी है

पर वहीं कुछ अंगो के बिना हमारा जीवन ही संभव नहीं है।

इंसानी शरीर के जैसे ही इंसानी समाज के संचालन में भी कई आवश्यक तत्वों जैसे

आर्थिक या भौतिक उपलब्धि के अलावा वैज्ञानिक, साहित्यिक और आवश्यक सृजनात्मक सेवाओं की एक अहम भूमिका होती है।

इसकी मार्केटिंग करने या ना करने भर से इनकी उपयोगिता पर कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता।

इसका तात्पर्य है कि जो बाजार के समक्ष नहीं है वह आवश्यक नहीं है कि व्यर्थ ही हो।🤔

इसलिए हर इंसान का सम्मान आवश्यक है क्योंकि कोई नहीं जानता कि किस नर में नारायण छुपे हो।

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